सुनो बेटी,
कलम उठा लो
अपने क्रोध की स्याही भर लो
और उतार दो कागज पर
जैसे आग का खंड काव्य !
तुम बोलोगी तो ही
ये समाज सुनेगा
ऐसे तो ये समाज बहरा है
तुम्हे गुंगा बना देगा
तुम्हारा क्रोध देख
कांपेंगे जब अन्यायी
तब तुम जीत जाओगी
अपनी नजरों में काबील बनोगी
अपनी रग रग में
भर लो चिंगारी
वाकिफ सबको करवा दो
अपनी क्रोध की सीमा
लांघ नहीं पाएगा कोई
उस लक्ष्मण रेखा को
जिसे तुमने हर नारी के
आगे बिछाई है
अपने क्रोध की !
अपने कलम की !!
©मितवा श्रीवास्तव